XY प्रकार के शरीरवाले पहलवान (चाहे जिस लिंग का हो) की सुंदरता को बरनता हुआ एक लमछुआ काव्य - महाकाव्य! इसे मैंने ब्रजभाषा में लिखा है, और शास्त्रीय ढंग (पुरानी पारंपरिक विधि) में लिखने की कोशिश की है, यद्यपि हिंदी भाषाओं की अपनी अनूठी शब्दावली से भी बहुतेरे शब्द लिए हैं।
महाकाव्य - लालित्य वर्णन
कवि - विदुर सूरी
अति ललित सुंदर रूप कुँ बरनौं रसिकन मनहिं हरनवारौ ब्योरौ
सब अंग अँगेट मानुस के सुघड़ाई भरे, छबीले अभिरूप सुरूप गँठीले बीर के
गोल मेंडरौ - सौ सिर काले केसनि सौं घिर्यौ चाँद तें माथे लौं पीठ पर घनौ उफान
जैसे तल पै हरी - भरी हरियाली ह्वै बिछी, झाड़ की चहुँ दिसि घने पातन कौ ढेर
माथौ चौड़ो बिनु झूरी, नीके वाके भौंह - जोड़ी, उठी, पैने खाँड़े की धार दिसैए को जीतत
आँखें लंबी गोल, पुतली को धरी पूरी भईं, धरे सेते कोएहुँ, औ दीठि चितवन प्यारी
लंब - दीह डील की नाक तगड़ी सुछेदित, कड़े मोटे गाल चौड़े, ज्यों गूली अरु नारंगी
मुँह के होंठ मँझोले मुटापे के, बाछें फूली - सी, मुस्कान स्मित मीत बनाइबे न्योतत है
दिसत दसन दाड़िम कनी की भाँतिन होंठ कुँदरू के ज्यों
बरन रातौ घनौ लपलप रसना जीभ लंबी - चौड़ी
ठोढ़ी कड़ी तगड़ी कसौटी, तालौ परत धरत चिकनौ ठोस
गलौ कंबु संख ठाढ़ो चौड़ाई बड़ी थाह, कान लंबे छेदभरे, कोमल गोल लोलकी
हँसुली चढ़ी बाँकी धनुस की बँकाई, कंधे गोल चढ़े उभरे टीले धरा तें उठे
पूरौ बल धरी बाँहें अँसन कौ चढ़ाव, सूरबीर तेज थर, परबत की चोटी
छाती चौड़ो सिलपट थूली उपजी खेत, तापै उरज उभरत, पठार पै भीटे
छाती की चौड़ाई देखि नभ कौ पसार लागै, गँठीले के अंगनि मैं लोनाई रंग रंगत
वापर रोम उगे, सिगरी छाती पै फैले, मानो खेत माँहि उपज प्रचुर घान की ह्वै
औ कुच पर चूचियाँ छोटी, चिपटे डौल की, ज्यों बिस्तार धरनी पै छुछुम उभार दोऊँ
भुजान लंबी थूली, चौड़ी अरु गँठीली, बाँहन महामाप की खिसकिकै उभरत
माल की भाँति ढाल पराक्रम कौ प्रतीक उभार ताकौ मानवी सौंदर्य कौ उभार
तगड़ाई ताकी यों कोऊ मापड़ी तें न मपै, सुडौल भुजाएँ जाकी गाँठें बल तें ह्वैं भरी
थूनी तगड़ी इतेक कि अँकवारी न जावै, कोहनी - सिरे चोखे घाटिन बीच चोटियाँ
टिंडियन कौ घिराव अतुल अगाध थाह, गोल डौल, दीघ डील, पहुँचे भी फूले - से ही
समूचे हाथनि पै, छाती पै, पेट पै, पेड़ू पै, बरन् सबै अंगन पै रोमटे पनपत हैं
कलाई साँकरी पर कछुक मुटापौ लिए पंजे लंबे गोल कादू के पेंदे के ज्यों अटल
हथेली बिछी - सी जापै रेखनि चलत इत - उत जैसे धरनी पर नदियन कौ दल
उँगलियाँ सुडौल सभी पोरें सही नाप की, अँटियाँ उतरीं, नँहन की डीलें सुसीमित
पेट अरु कटि थल पेड़ू कूल्हे अंगु भी, नीकी अँगलेट के ये सिगरे अंग सुढंग
पेट औ उदर पूठे हाटी - काटी बनावट कटि तो अंग भंग और कूल्हे बाहर उभरे
माँझ भाग तन कौ सुघड़ सुपोसित बिध, ईटन कौ टालौ, चटान अटल गठन की
गठन डौल ललित कूलहनि कौ पटि भंग, नाहीं मोटौ, नाहीं झीनौ, अटट बिचलौ डौल
काँखन छिपीं तिनके नीचे पास चौड़े ठोस, बड़ौ घेर वाकौ, छाती भी त्यों ही घेरि कों धरै
बीच सरोनि - उदर, बीच नाभि कौ छेद, सुसथ अलैंगिक इनि अंगनि की बनावट
समूचे सरीर पर रोएँ बहुतेरे उगे पेट अरु उदर पै पीठि पै प्रति अंग पै
मानुस अंकुरित जवानी कै वे लिए धज, अनूठी सुंदरता माँहि निखार ते लावैं
पीठ, फैले अंबर की भाँति चौड़ो सिल समतल कड़ो सपाट जाके नीचे हैं कूल्हे गोल
पूठे सौं, चूतड़ तक, काछे सौं पाठे सौं लिंग लग सबै जनन अंगन पर सुबसन
नैकुहुँ न लैंगिकता, कोऊ ओछी बात नाहीं, तन के सुथरेपनि कुँ लिए सगरे ठाढ़े
कौनूँ बस्तुन गाड़ कों गठरी माँहि जैसे कि बाँधि दियौ कि कछुकहुँ सुघरई दिखावै
सब समय सुबरताव तें स्वच्छ अंग विनके नीचे पैर - जोड़ी लकड़ियन जुगल
जाँघें अरु पिंडलियाँ दोऊँ बिरछ के धड़ कहियत, बीच साँकरौ भाग पर चाकियाँ
दोहुँ लंबे, गोल गतकन की सटान लागें, गिलटी पर घुटने जैसे ह्वैं गोल कटोरे
मानियै लाठी के बल अटल अटारी लदी, टिकी, ठोस नींव काहुँ परकार नाहीं हटै
इनि अंगनु पर रोअँन की उपज, नर के फूले सुरूप कै बढ़े - चढ़े छुछुम अंश
पतरी लाठी गाटौ टखने कोने की दोनियाँ सुलंबे पाँव नँहन रमन उँगलियाँ
चिकनी गोल - मटोल एड़ी, सपाट तलवौ, चाल सीधी चोखी सुंदर चलात चरन
या बिध सिख सौं तलवे तलक बरनन मानौ की सुंदरता कौ भली भांति बतायौ
न जलनि तें, न छूछौ, न भेद - भाव जनक, केवल सुहानी छबि की एक राय बताई
जो लोग या रचना सौं हरख्यौ लिखेरौ भी अत हुलसत है उनकों हरखाइबे पै
जु जन औरे कछु न्यारौ मत राखत हैं, अपने बिचार पालैं, याकों हुँ बिकसन दैं
© Vidur Sury. All rights reserved
© विदुर सूरी। सर्वाधिकार सुरक्षित
कवि - विदुर सूरी
अति ललित सुंदर रूप कुँ बरनौं रसिकन मनहिं हरनवारौ ब्योरौ
सब अंग अँगेट मानुस के सुघड़ाई भरे, छबीले अभिरूप सुरूप गँठीले बीर के
गोल मेंडरौ - सौ सिर काले केसनि सौं घिर्यौ चाँद तें माथे लौं पीठ पर घनौ उफान
जैसे तल पै हरी - भरी हरियाली ह्वै बिछी, झाड़ की चहुँ दिसि घने पातन कौ ढेर
माथौ चौड़ो बिनु झूरी, नीके वाके भौंह - जोड़ी, उठी, पैने खाँड़े की धार दिसैए को जीतत
आँखें लंबी गोल, पुतली को धरी पूरी भईं, धरे सेते कोएहुँ, औ दीठि चितवन प्यारी
लंब - दीह डील की नाक तगड़ी सुछेदित, कड़े मोटे गाल चौड़े, ज्यों गूली अरु नारंगी
मुँह के होंठ मँझोले मुटापे के, बाछें फूली - सी, मुस्कान स्मित मीत बनाइबे न्योतत है
दिसत दसन दाड़िम कनी की भाँतिन होंठ कुँदरू के ज्यों
बरन रातौ घनौ लपलप रसना जीभ लंबी - चौड़ी
ठोढ़ी कड़ी तगड़ी कसौटी, तालौ परत धरत चिकनौ ठोस
गलौ कंबु संख ठाढ़ो चौड़ाई बड़ी थाह, कान लंबे छेदभरे, कोमल गोल लोलकी
हँसुली चढ़ी बाँकी धनुस की बँकाई, कंधे गोल चढ़े उभरे टीले धरा तें उठे
पूरौ बल धरी बाँहें अँसन कौ चढ़ाव, सूरबीर तेज थर, परबत की चोटी
छाती चौड़ो सिलपट थूली उपजी खेत, तापै उरज उभरत, पठार पै भीटे
छाती की चौड़ाई देखि नभ कौ पसार लागै, गँठीले के अंगनि मैं लोनाई रंग रंगत
वापर रोम उगे, सिगरी छाती पै फैले, मानो खेत माँहि उपज प्रचुर घान की ह्वै
औ कुच पर चूचियाँ छोटी, चिपटे डौल की, ज्यों बिस्तार धरनी पै छुछुम उभार दोऊँ
भुजान लंबी थूली, चौड़ी अरु गँठीली, बाँहन महामाप की खिसकिकै उभरत
माल की भाँति ढाल पराक्रम कौ प्रतीक उभार ताकौ मानवी सौंदर्य कौ उभार
तगड़ाई ताकी यों कोऊ मापड़ी तें न मपै, सुडौल भुजाएँ जाकी गाँठें बल तें ह्वैं भरी
थूनी तगड़ी इतेक कि अँकवारी न जावै, कोहनी - सिरे चोखे घाटिन बीच चोटियाँ
टिंडियन कौ घिराव अतुल अगाध थाह, गोल डौल, दीघ डील, पहुँचे भी फूले - से ही
समूचे हाथनि पै, छाती पै, पेट पै, पेड़ू पै, बरन् सबै अंगन पै रोमटे पनपत हैं
कलाई साँकरी पर कछुक मुटापौ लिए पंजे लंबे गोल कादू के पेंदे के ज्यों अटल
हथेली बिछी - सी जापै रेखनि चलत इत - उत जैसे धरनी पर नदियन कौ दल
उँगलियाँ सुडौल सभी पोरें सही नाप की, अँटियाँ उतरीं, नँहन की डीलें सुसीमित
पेट अरु कटि थल पेड़ू कूल्हे अंगु भी, नीकी अँगलेट के ये सिगरे अंग सुढंग
पेट औ उदर पूठे हाटी - काटी बनावट कटि तो अंग भंग और कूल्हे बाहर उभरे
माँझ भाग तन कौ सुघड़ सुपोसित बिध, ईटन कौ टालौ, चटान अटल गठन की
गठन डौल ललित कूलहनि कौ पटि भंग, नाहीं मोटौ, नाहीं झीनौ, अटट बिचलौ डौल
काँखन छिपीं तिनके नीचे पास चौड़े ठोस, बड़ौ घेर वाकौ, छाती भी त्यों ही घेरि कों धरै
बीच सरोनि - उदर, बीच नाभि कौ छेद, सुसथ अलैंगिक इनि अंगनि की बनावट
समूचे सरीर पर रोएँ बहुतेरे उगे पेट अरु उदर पै पीठि पै प्रति अंग पै
मानुस अंकुरित जवानी कै वे लिए धज, अनूठी सुंदरता माँहि निखार ते लावैं
पीठ, फैले अंबर की भाँति चौड़ो सिल समतल कड़ो सपाट जाके नीचे हैं कूल्हे गोल
पूठे सौं, चूतड़ तक, काछे सौं पाठे सौं लिंग लग सबै जनन अंगन पर सुबसन
नैकुहुँ न लैंगिकता, कोऊ ओछी बात नाहीं, तन के सुथरेपनि कुँ लिए सगरे ठाढ़े
कौनूँ बस्तुन गाड़ कों गठरी माँहि जैसे कि बाँधि दियौ कि कछुकहुँ सुघरई दिखावै
सब समय सुबरताव तें स्वच्छ अंग विनके नीचे पैर - जोड़ी लकड़ियन जुगल
जाँघें अरु पिंडलियाँ दोऊँ बिरछ के धड़ कहियत, बीच साँकरौ भाग पर चाकियाँ
दोहुँ लंबे, गोल गतकन की सटान लागें, गिलटी पर घुटने जैसे ह्वैं गोल कटोरे
मानियै लाठी के बल अटल अटारी लदी, टिकी, ठोस नींव काहुँ परकार नाहीं हटै
इनि अंगनु पर रोअँन की उपज, नर के फूले सुरूप कै बढ़े - चढ़े छुछुम अंश
पतरी लाठी गाटौ टखने कोने की दोनियाँ सुलंबे पाँव नँहन रमन उँगलियाँ
चिकनी गोल - मटोल एड़ी, सपाट तलवौ, चाल सीधी चोखी सुंदर चलात चरन
या बिध सिख सौं तलवे तलक बरनन मानौ की सुंदरता कौ भली भांति बतायौ
न जलनि तें, न छूछौ, न भेद - भाव जनक, केवल सुहानी छबि की एक राय बताई
जो लोग या रचना सौं हरख्यौ लिखेरौ भी अत हुलसत है उनकों हरखाइबे पै
जु जन औरे कछु न्यारौ मत राखत हैं, अपने बिचार पालैं, याकों हुँ बिकसन दैं
© Vidur Sury. All rights reserved
© विदुर सूरी। सर्वाधिकार सुरक्षित
No comments:
Post a Comment
Thank you for reading! I welcome your valuable comment!