परिश्रम से सफलता पाने के विषय पर हमारी एक कविता रचना, साथ ही साथ धर्म के विरोध के अपने विचारों को माध्यम देते हुए। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपनी प्रतिक्रियाओं में धर्म (धार्मिक मान्यता) का साथ देनेवाले मत पर ज़ोर देनेवाले तर्क प्रस्तुत बिलकुल नहीं करें। आपको जो उचित लगता है वह आपका निजी उसूल है, पर इसमें प्रकट किए हुए मत का विरोध नहीं करें।
कवि - विदुर सूरी
मन अपनाओ सही पथ
मिलें साँचे मनोरथ
बीचो - बीच जीवन की गत
तभी तुम हो पाओ उन्नत
कभी जो लगे धर्म ही अच्छा
ज़ुल्म ढाएगा, मिटाएगा कच्चा
धर्म की बातें कभी न ठीक
घिन करो उससे हो निर्भीक
काम में थककर जब सूझे
कि धर्म की ज़ुल्मों से जूझें
धर्म तो है झूठा सहारा
भद्दा इतना कि नहीं गँवारा
काम थकाए पैरों को
नदिया पार हो, तैरो तो
धर्म जलाए अपने पाँव
मौत से तो अच्छा है घाव
काम न करने को मन चाहे
ज्यों कि उठाकर गिरा दें बाहें
फिर भी सही गैल है काम
जीसी से मिले निज सुख धाम
काम का दबाव लगे निठुर
पथ पर बिछे हैं बहुत अंकुर
पर जब पार हो राह कठिन
दिखाएगी वह सुनहरे दिन
© Vidur Sury. All rights reserved
© विदुर सूरी। सर्वाधिकार सुरक्षित
मन अपनाओ सही पथ
मन अपनाओ सही पथ
मिलें साँचे मनोरथ
बीचो - बीच जीवन की गत
तभी तुम हो पाओ उन्नत
कभी जो लगे धर्म ही अच्छा
ज़ुल्म ढाएगा, मिटाएगा कच्चा
धर्म की बातें कभी न ठीक
घिन करो उससे हो निर्भीक
काम में थककर जब सूझे
कि धर्म की ज़ुल्मों से जूझें
धर्म तो है झूठा सहारा
भद्दा इतना कि नहीं गँवारा
काम थकाए पैरों को
नदिया पार हो, तैरो तो
धर्म जलाए अपने पाँव
मौत से तो अच्छा है घाव
काम न करने को मन चाहे
ज्यों कि उठाकर गिरा दें बाहें
फिर भी सही गैल है काम
जीसी से मिले निज सुख धाम
काम का दबाव लगे निठुर
पथ पर बिछे हैं बहुत अंकुर
पर जब पार हो राह कठिन
दिखाएगी वह सुनहरे दिन
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